डाॅ. वसुधा धागमवार
(1940-2014)
28 फरवरी 2021
Remembering Dr. Vasudha Dhagamwar on her 81st Birth Anniversary
सावदा घेवरा पुनर्वास काॅलोनी, जैसा कि नाम से ही प्रतित होता है कि यह एक विस्थापित किए गए लोगों की आबादी है। इस काॅलोनी के लोगों द्वारा विस्थापन के दर्द का अनुभव एवं उनको आत्मसात् करना और निरंतर बेहतर जीवन जीने की कामना करना एक यथार्थ है। ‘मार्ग’ संस्था इस काॅलोनी के बसने के लगभग शुरूआत से ही सक्रीय और यहां समय-समय पर नागरिक सरोकार के मुद्दों को उठाती रही है। महिला अधिकारों के मुद्दों को हारशिंगार महिला समूह जैसे प्लेटफार्म बनाकर उठाती एवं समस्याओं का समाधान कराती रही है। इसकार्य में Flowering Tree, Inc का सहयोग उल्लेखनीय रहा है।
आज ‘मार्ग’ संस्था की संस्थापक एवं प्रथम निदेशिका सुश्री डाॅ. वसुधा धागमवार का जन्मोत्सव है। वैसे तो उनका जन्म 29 फरवरी 1940 को हुआ था। चुकि 29 फरवरी 4 साल में एक बार आता है इसलिए उनके जन्म के उत्सव को बाकी के तीन सालों में 28 फरवरी को ही मनाया जाता है। चुकि इस साल कोरोना महामारी की प्रोटोकाॅल के वजह से बड़े जनसमूह को एकत्रित करना सम्भव नहीं था इसलिए इस वर्ष मुफ्त कानूनी सलाह शिवर आयोजित किया जा रहा है, ताकि सावदा की महिलाएं व अन्य जरूरतमंद लोग कानूनी सलाह का लाभ ले सकें।
आइये जानते हैं कि डाॅ. वसुधा धागमवार कौन थी। वसुधाजी एक बहुमुखी प्रतिभा की महिला थी। वह एक विचारक, वकील, अध्यापक, विद्वान, सामाजिक कार्यकर्ता और बेहतर इन्सान थी। जिस दौर मे महिलाओं को घर से बाहर निकलना मुश्किल था, घरेलू हिंसा और पितृसत्ता का सामना करना पड़ता था उस दौर में वसुधाजी ने नारी शक्ति को आवाज देने का प्रण लिया। 1960 के दसक में उन्होंने ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड विश्व विद्यालय से कानून में डाॅक्टरेट की उपाधि प्राप्त किया। इससे पहले उन्होंने वकालत की पढ़ाई मुम्बई विश्व विद्यालय से पूरा किया था। उनका बचपन बिहार एवं वर्तमान झारखंड राज्य के दूर-दराज के क्षेत्रों में बिता था। उन्होंने गरीबी के दुश्चक्र, सामाजिक दूर्दशा, महिला एवं अन्य हाशिये पर जीवन जीने वाले लोगों के समस्याओं को बहुत करीब से महसुस किया था। अपने कैरियर के आरम्भिक वर्षों में वह एक सफल प्राध्यापिका (शिक्षक), वकील एवं सामाजिक सरोकार के मुददों को उठाने वाली पत्रकार रही हैं।
1970 के दशक के नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार सरोवर बांध परियोजना के परिणाम स्वरूप विशाल जन विस्थापन हुआ, जिसकी वजह से हजारों लोगों को दुःखों का सामना करना पड़ा। उस वक्त वसुधाजी ने जबरन भू-अधिग्रहण और विस्थापन के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने अनुभव किया कि अधिकतर लोगों को कानून में दिये गये अधिकार और उसे प्राप्त करने की प्रक्रियाओं के बारे में पता ही नहीं होता इसलिए उन्हें दुःखों का सामना करना पड़ता है। बाद के दिनों में इन्होंने महिला अधिकार के मुद्दों को भी जोर-शोर से उठाना शुरू किया। विशेष करके ‘मथूरा रेप केस’ के बाद इन्होंने कानून के द्वारा उस दौर में महिलाओं को समूचित न्याय न देने की अक्षमता को उजागर कर दिया।
1985 में अपने प्रयासों को संगठित रूप देने का निर्णय लिया और दिल्ली के शाहपुर जाट गांव में ‘मार्ग’ (मल्टिपल एक्शन रिसर्च ग्रुप) संस्था की स्थापना की। यह गांव भी एशियाड खेलों के दौरान विस्थापन का शिकार हुआ था।
‘मार्ग’ संस्था के बैनर तले उन्होंने जन सरोकार, महिला अधिकार, दलित एवं आदिवासी अधिकार एवं अन्य वंचित वर्गोंं के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण अनुसंधान एवं कानूनी जागरूकता के कार्य किए।
तो इस तरह से हमने देखा कि कैसे वसुधाजी ने एक सफल नेतृत्वकर्ता, समाज सुधारक, जनसेवक, महिला अधिकार की प्रचारक, भारत के संविधान एवं कानूनी पहलूओं की जानकार का जीवन व्यतित किया। इनका जीवन समाज के हर तबके के लिए एवं विशेष रूप से महिलाओं व हाशिये के लोगों के लिए एक संदेश है।
‘‘तू बोलेगी, मुह खोलेगी,
तब ही तो जमाना बदलेगा ।
तू खूद को बदल, तू खुद को बदल
तब ही तो जमाना बदलेगा।।’’